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क्या सच में महिषासुर दलित या आदिवासी था?

हिंदू माइथोलॉजी के मुताबिक महिषासुर दानवों का राजा था. वो अपनी असीमित शक्तियों के बूते तीनों लोकों में उत्पात मचाने लगा. उसका अंत करने के लिए देवताओं के तेज से मां दुर्गा का जन्म हुआ, जिसने महिषासुर का संहार किया. लेकिन महिषासुर की सिर्फ यही कहानी नहीं है. देश के कई हिस्से ऐसे हैं, जहां महिषासुर की पूजा होती है. कुछ जनजाति लोग उसे अपना पूर्वज मानते हैं. कुछ इलाकों में महिषासुर को दलित माना जाता है. आखिर महिषासुर को लेकर इतनी कहानियां क्यों प्रचलित हैं?

हिंदू माइथोलॉजी के मुताबिक महिषासुर की कहानी

हिंदू माइथोलॉजी के मुताबिक महिषासुर एक असुर था. उसका पिता असुरों का राजा रंभ था. रंभ को एक महिषी (भैंस) से प्रेम हो गया. महिषासुर इन्हीं दोनों की संतान था. इंसान और भैंस के समागम से पैदा होने की वजह से महिषासुर जब चाहे मनुष्य और जब चाहे भैंस का रूप धारण कर सकता था.

महिषासुर ने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे वरदान मांगने को कहा. महिषासुर ने कहा कि उसे ये वरदान दें कि देवता या दानव कोई उस पर विजय प्राप्त न कर सके. ब्रह्मा का वरदान पाकर महिषासुर आततायी हो गया. वो देवलोक में उत्पात मचाने लगा. उसने इंद्रदेव पर विजय पाकर स्वर्ग पर कब्जा जमा लिया. ब्रह्मा विष्णु महेश समेत सभी देवतागण परेशान हो उठे. महिषासुर के संहार के लिए सभी देवताओं के तेज से मां दुर्गा का जन्म लिया.

मां दुर्गा को सभी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र दिए. भगवान शिव ने अपना त्रिशूल दिया. भगवान विष्णु ने अपना चक्र दिया. इंद्र ने अपना वज्र और घंटा दिया. इसी तरह से सभी देवताओं के अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित मां दुर्गा शेर पर सवार होकर महिषासुर का संहार करने निकली.

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हिंदू माइथोलॉजी के मुताबिक देवी दुर्गा ने महिषासुर के आतंक से देवताओं को मुक्त करने के लिए उसका संहार किया.

महिषासुर और उसकी सेना के साथ देवी दुर्गा का भयंकर युद्ध हुआ. देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलवाई. महिषासुर के वध के कारण ही मां दुर्गा महिषासुर मर्दिनी कहलाईं.

आदिवासी और दलित क्यों मानते हैं महिषासुर को अपना पूर्वज?

महिषासुर को कुछ आदिवासी और दलित इलाकों में भगवान माना जाता है. इन इलाकों के आदिवासी और दलित इसे अपना पूर्वज मानते हैं. झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ आदिवासी इलाकों में महिषासुर को पूजा जाता है. इनका कहना है कि देवी दुर्गा ने छल से उसका वध किया था. महिषासुर उसके पूर्वज थे और देवताओं ने असुरों का नहीं बल्कि उनके पूर्वजों का संहार किया था.

झारखंड के गुमला में असुर नाम की एक जनजाति रहती है. ये लोग महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं. झारखंड के सिंहभूम इलाके की कुछ जनजाति भी महिषासुर को अपना पूर्वज मानती है. इन इलाकों में नवरात्रों के दौरान महिषासुर का शहादत दिवस मनाया जाता है. बंगाल के काशीपुर इलाके में भी आदिवासी समुदाय के लोग महिषासुर के शहादत दिवस को धूमधाम से मनाते हैं.

कई जगहों पर महिषासुर को राजा भी माना जाता है. असुर जनजाति के लोग नवरात्रों के दौरान दस दिनों तक शोक मनाते हैं. इस दौरान किसी भी तरह के रीति रिवाज या परंपरा का पालन नहीं होता है. आदिवासी समुदाय के लोग बताते हैं कि उस रात विशेष एहतियात बरता जाता है, जिस रात महिषासुर का वध हुआ था.

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कई इलाकों में महिषासुर को पूजा जाता है

कुछ आदिवासी मानते हैं कि महिषासुर का असली नाम हुडुर दुर्गा था. वो एक वीर योद्धा था. महिषासुर महिलाओं पर हथियार नहीं उठाता था. इसलिए देवी दुर्गा को आगे कर उनकी छल से हत्या कर दी गई. आदिवासी आज भी महिषासुर के किस्सों को अपने बच्चों को बताते हैं.

आदिवासी और दलित मिथकों में क्या है महिषासुर की कहानी

महिषासुर को आदिवासी या दलित बताने वाले समुदाय के मुताबिक ये आर्यों और अनार्यों के बीच की लड़ाई की कहानी है. इस कहानी के मुताबिक करीब 3 हजार साल पहले महिषासुर अनार्यों का राजा था. उस दौर में अनार्य भैंसों की पूजा करते थे. महिषासुर के पास असीमित शक्ति थी. उसने अपनी ताकत के बल पर कई आर्य राजाओं को शिकस्त दी थी. उत्तरी आर्यावर्त में महिषासुर की ख्याति थी.

उसी दौर में उत्तरी आर्यावर्त के एक हिस्से में एक रानी ने शासन संभाला. वो आर्य राजा जो महिषासुर से हार चुके थे, सबने मिलकर उस रानी से महिषासुर के खिलाफ युद्ध लड़ने की प्रार्थना की. रानी ने युद्ध के लिए विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों से लैस शक्तिशाली सेना बनाई. जबकि महिषासुर के पास सेना कम पड़ गई. उसके पास सैनिकों की कमी हो गई थी.

महिषासुर को लगता था कि वो एक रानी से नहीं हार सकता. फिर भी उसने रानी के पास बातचीत के लिए अपने दूत भेजे. रानी ने दूत को बिना बातचीत के वापस लौटा दिया. लेकिन महिषासुर बार-बार बातचीत का न्यौता देने के लिए अपने दूत भेजता रहा. तब तक रानी ने अपनी विशालकाय सेना के साथ महिषासुर पर आक्रमण कर दिया. महिषासुर के पास भी शक्तिशाली सेना थी. महिषासुर को लग रहा था कि वो जीत जाएगा. लेकिन रानी ने महिषासुर के सीने को अपने त्रिशूल से छलनी कर दिया. रानी के पालतू शेर ने महिषासुर को खत्म कर दिया.

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महिषासुर को अपना पूर्वज मानने वाले आदिवासी और दलित उसकी यही कहानी बताते हैं.