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गंगा या अन्य सहायक नदियों में मूर्ति विसर्जन बैन, देना होगा 50,000 रुपये का जुर्माना

अब दुर्गापूजा, विश्वकर्मा पूजा, गणेश चतुर्थी पूजा और छठ पूजा के दौरान गंगा या सहायक नदियों को प्रदूषित करना महंगा पड़ सकता है. दरअसल केंद्र सरकार के नए फ़ैसले के बाद अब इन नदियों में मूर्ति विसर्जन करने पर 50 हज़ार रुपये का जुर्माना भरना होगा.

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने 11 राज्यों के मुख्य सचिव को निर्देश जारी कर बताया है, ‘गंगा या उनकी अन्य सहायक नदियों में मूर्ती विसर्जन पर रोक लगाई जाए.’ यह फ़ैसला एनएमसीजी की पिछले महीने की बैठक के बाद लिया गया है.

इस बैठक में उत्तराखंड, यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के अधिकारी भी मौज़ूद थे. इन राज्यों के अलावा दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और राजस्थान को भी दिशानिर्देश भेजा गया है.

अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए सूत्रों ने बताया, ‘सभी अधिकारियों से इस नियम को सख़्ती से लागू करने को कहा गया है. आदेश के बाद मूर्ति या पूजा संबंधी कोई भी सामान नदियों में नहीं बहायी जाए. पर्यावरणनुकुल तरीके से इन सभी वस्तुओं का विसर्जन किया जाए.’

पर्यावरण (सुरक्षा) क़ानून, 1986 के खंड 5 के तहत सभी राज्यों को निर्देश दिया गया है कि ‘गंगा या किसी अन्य सहायक नदियों में मूर्ति विसर्जन पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए.

अगर कोई नदी में मूर्ति विसर्जित करता पाया जाता है तो उससे 50,000 का जुर्माना किया जाए. म्युनिसिपल एरिया या नदी के किनारे किसी ख़ास स्थान पर मूर्ति विसर्जन के लिए जगह निर्धारित किया जाए, जिससे कि ससम्मान पूजा समाप्त की जा सके.’

एनएमसीजी के अधिकारियों का कहना है कि पूजा के दिनों में गंगा नदी के अंदर प्रदूषण काफी बढ़ जाता है. उसी पर रोक लगाने के लिए यह नियम लागू किया जा रहा है.

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ज़ाहिर है साल 2014 में केंद्र सरकार ‘नमामि गंगे प्रोजेक्ट’ लेकर आई थी. इस प्रोजेक्ट के तहत 20,000 करोड़ की राशि गंगा को साफ करने के नाम पर खर्च किया गया. वहीं साल 2017 में ग्रीन ट्रिब्युनल यानी कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने गंगा में सभी तरह के अपशिष्ट पदार्थों के प्रवाह पर रोक लगा दी थी.