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नवरात्रि पर कलश स्थापना जानिए महत्व और स्थापना विधि

अनादि न्यूज़ डॉट कॉम,ज्योतिष न्यूज़ । नवसंवत्सर के प्रथम दिन यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तिथि तक के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। चैत्र मास के नवरात्रि पर्व को वासन्तिक नवरात्रि पर्व कहा जाता है। सनातन धर्म में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 9 अप्रैल को और रामनवमी 17 अप्रैल को पड़ रही है। अत: शक्ति की अधिष्ठात्री मां जगदंबा की पूजा-आराधना का विशेष पर्व वासंतिक नवरात्रि इस बार पूरे नौ दिन का होगा। कोई भी काम शुरू करने के लिए नवरात्रि के दिन बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन नौ दिनों में माता रानी के भक्त व्रत रखते हैं और विधि पूर्वक माता की आराधना करते हैं। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना के साथ होती है। नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं नवरात्रि में कलश स्थापना क्यों की जाती है।

क्यों करते हैं कलश स्थापना

नवरात्रि पूजन में कलश स्थापना के साथ ही देवी दुर्गा की उपासना प्रारंभ होती है। कलश स्थापना को घटस्थापना भी कहते हैं। देवीपुराण में उल्लेख मिलता है कि भगवती देवी की पूजा-अर्चना की शुरुआत करते समय सबसे पहले कलश की स्थापना की जाती है। नवरात्रि के शुभ मौके पर मंदिरों के साथ-साथ घरों में भी कलश स्थापित कर परमब्रह्म देवी दुर्गा के नौ शक्ति स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार कलश को ब्रह्मा, विष्णु, महेश और मातृगण का निवास बताया गया है। लंका विजय के उपरांत भगवान श्री राम के अयोध्या लौटने पर उनके राज्यभिषेक के उपलक्ष्य में जल से भरे कलशों की पंक्तियाँ रखी गईं थीं। रामचरित मानस में कहा गया है कि-

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कंचन कलस विचित्र संवारे। सबहिं धारे सजि निज द्वारे

इस प्रकार देखा जाए तो हमारी सनातन संस्कृति में कलश अथवा घट अत्यंत मांगलिक चिन्ह के रूप में प्रतिष्ठित है। किसी भी प्रकार की पूजा,अनुष्ठान,राज्याभिषेक,गृहप्रवेश,यात्रा के आरम्भ,विवाह आदि शुभ अवसरों पर सर्वप्रथम कलश को लाल कपड़े,स्वास्तिक,आम के पत्तों,नारियल,सिक्का,कुमकुम,अक्षत,फूल आदि से अंलकृत करके ब्रह्मा,विष्णु और महेश के रूप में उसकी पूजा की जाती है और अनुष्ठान विशेष के फलीभूत होने की मनोकामना की जाती है। साथ ही वरुणदेव का आवाहन किया जाता है,ताकि कलश हमारे लिए समुद्र के समान वैभवशाली रत्नतुल्य फल प्रदान करे। कलश स्थापना करने से घर में सुख-समृद्धि आती है,साथ ही मां दुर्गा का आशीर्वाद भी मिलता है।

कलश स्थापना के नियम

धार्मिक मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन साधक सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान कर लें और मन में शुद्धभाव से माता का ध्यान करते हुए विधिवत पूजा आरंभ करें। नवरात्रि के नौ दिनों के लिए अखंड ज्योति प्रज्वलित करें और कलश स्थापना के लिए सामग्री तैयार कर लें।

कलश स्थापना के लिए एक मिट्टी के पात्र में या किसी शुद्ध थाली में मिट्टी और उसमें जौ के बीज डाल लें। इसके उपरांत मिट्टी के कलश अथवा तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और ऊपरी भाग में मौली बांध लें।

इसके बाद लोटे में जल भर लें और उसमें थोड़ा गंगाजल जरूर मिला लें। फिर कलश में दूब, अक्षत, सुपारी और सवा रुपया रख दें। ऐसा करने के बाद आम या अशोक की छोटी टहनी कलश में रख दें।

इसके बाद एक पानी वाला नारियल लें और उस पर लाल वस्त्र लपेटकर मौली बांध दें। फिर इस नारियल को कलश के बीच में रखें और पात्र के मध्य में कलश स्थापित कर दें। ऐसा करने के बाद दुर्गा चालीसा का पाठ करें और मां दुर्गा की आरती कर अपने परिवार की कुशलता के लिए माँ से प्रार्थना करें।

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