मोबाइल फोन का ज्यादा इस्तेमाल और वाईफाई रेडिएशन आपको अल्जाइमर का मरीज बना सकते हैं। यह दावा करेंट अल्जाइमर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित एक हालिया स्टडी में किया गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, सेल फोन रेडिएशन से दिमाग के सेल्स में कैल्शियम का लेवल बढ़ जाता है, जो अल्जाइमर की बीमारी का मुख्य कारण है।
इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने अल्जाइमर से जुड़ी कई स्टडीज को रिव्यू किया। उन्होंने पाया कि फोन के इस्तेमाल से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फोर्स (EMF) जनरेट होता है, जिसकी वजह से दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है। रिसर्चर्स का मानना है कि वायरलेस कम्युनिकेशन सिग्नल्स खासतौर पर दिमाग में वोल्टेज गेटेड कैल्शियम चैनल्स (VGCCs) को एक्टिवेट करते हैं, जिनसे कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है।
मस्तिष्क में कैल्शियम की मात्रा एकदम से बढ़ने पर अल्जाइमर की स्टेज भी जल्दी आती है। जानवरों पर हुए शोधों में ये बात सामने आई है कि EMF की वजह से सेल्स में कैल्शियम जमने के कारण अल्जाइमर की बीमारी समय से पहले ही हो सकती है। बता दें कि ये डिमेंशिया (मनोभ्रंश) का सबसे सामान्य प्रकार है।
कई शोधों में पाया गया है कि लोगों में अल्जाइमर संबंधी बदलाव लक्षण दिखने के 25 साल पहले से ही आने लगते हैं। नतीजे ये भी कहते हैं कि EMF से एक्सपोज होने के चलते अल्जाइमर बुढ़ापे से पहले भी आ सकता है।
डॉक्टर्स के मुताबिक, पिछले 20 सालों में अल्जाइमर के मरीजों की औसतन उम्र भी घटी है। ये दुनिया भर में वायरलेस कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के बढ़ते चलन के साथ हुआ है। हाल की स्टडीज की मानें तो 30 से 40 साल के युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। यह घंटों मोबाइल और वाईफाई रेडिएशन से एक्सपोज होने के कारण हो रहा है। इसे ‘डिजिटल डिमेंशिया’ भी कहते हैं।
रिसर्च में कहा गया है कि अल्जाइमर को महामारी बनने से रोकने के लिए तीन टॉपिक्स पर रिसर्च करनी होगी। पहला- युवाओं में MRI स्कैन के जरिए डिजिटल डिमेंशिया के असामान्य लक्षण। दूसरा- 30 से 40 की उम्र के लोगों में अल्जाइमर के शुरुआती लक्षण। तीसरा- कम से कम एक साल मोबाइल एंटीना के पास रह रहे लोगों के दिमाग पर उसका प्रभाव।