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आर्थिक बदहाली और फौज से तनातनी के बीच गृहयुद्ध की ओर बढता पाकिस्तान

पड़ोसी देश पाकिस्तान में एक ओर बाढ़ की जानलेवा विभीषिका है तो दूसरी ओर भयंकर महंगाई ने आग लगाई हुई है। अतिवृष्टि के कारण बलोचिस्तान और सिंध प्रांतो का एक बड़ा हिस्सा पानी में डूबा हुआ है। उधर महंगाई की मार ने पाकिस्तानियों का जीवन दूभर किया हुआ है। पाकिस्तान में पेट्रोल 237 रूपये (पाकिस्तान रुपयों में) लीटर है। चीनी 155 रूपये किलो है। पाकिस्तान के कई इलाकों में टमाटर 500 रूपये और प्याज़ 300 रूपये किलो तक बिका है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 1.1 अरब डॉलर मिलने के बाद भी पाकिस्तानी रुपया लगातार नीचे गिरता ही जा रहा है। इन दिनों एक अमरीकी डॉलर लेने के लिए 240 पाकिस्तानी रुपयों की ज़रुरत पड़ रही है। 2014 में एक भारतीय रुपए में कोई डेढ़ पाकिस्तानी रुपया मिल सकता था। आज एक भारतीय रुपए में औसतन पौने तीन पाकिस्तानी रुपए मिल जायेंगे। पाकिस्तान की आर्थिक हालत इतनी पतली है कि बाढ़ से परेशान जनता को कम्बल और ओढ़ने बिछाने के कपड़ों तक के लिए प्रधानमंत्री शहवाज शरीफ दूसरे देशों से मदद की गुहार लगा रहे हैं। मगर आप पाकिस्तानी अख़बारों और टीवी चैनलों को देखें तो इन ख़बरों की जगह वहाँ दूसरी ही खबर सुर्ख़ियों में हैं। ये खबर है पूर्व क्रिकेटर और अपदस्थ प्रधान मंत्री इमरान खान और पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा की आपसी खुन्नस और ज़बरदस्त लड़ाई की।

इमरान खुलेआम कह रहे हैं कि जरनल बाजवा ने षड्यंत्र करके उन्हें अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सत्ता से हटा दिया। लेकिन जिस भाषा का प्रयोग वे उनके लिए कर रहे हैं, वैसा आज तक किसी राजनेता ने पाकिस्तानी सेना की कमान के लिए नहीं किया। अपने जलसों में इमरान खान ने पाकिस्तानी सेना की कमान को जानवर, गीदड़ और मीर जाफर तक कह डाला है। पाकिस्तान में कहने को तो चुनाव होते हैं, पर असल में वहाँ सेना ही सब कुछ तय करती है। लोगों का मानना है कि चार साल पहले सेनाध्यक्ष जरनल बाजवा ने ही नवाज़ शरीफ को चुनाव में हरवाकर इमरान खान को प्रधानमंत्री बनवाया था। तीन साल तक तो दोनों के बीच सब ठीक ठाक रहा परन्तु पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख की तैनाती के सवाल पर दोनों में ठन गयी। जिस सैन्य अधिकारी को जरनल बाजवा आईएसआई का प्रमुख बनाना चाहते थे शुरू में तो इमरान खान ने उनकी तैनाती नहीं की, पर बाद में उन्हें इसके लिए विवश होना पड़ा। लेकिन बात यहीं तक नहीं रुकी।

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जिस नवाज़ शरीफ की पार्टी को सेना ने हटवाया था और अदालतों के ज़रिये उन्हें कोई भी राजनीतिक पद लेने के अयोग्य घोषित करके जेल में डलवा दिया था, उन्हीं के छोटे भाई शहबाज शरीफ को इसी अप्रैल में प्रधानमंत्री बनवा दिया गया। पाकिस्तानी मीडिया में उस समय खबर गर्म थी कि जब संसद में हारने के बावजूद इमरान खान गद्दी नहीं छोड़ रहे थे तो सेनाध्यक्ष बाजवा ने रात में उनके घर जाकर इमरान को इस्तीफे के लिए मजबूर किया था। कहा तो यहाँ तक गया कि आपस में गर्मागर्मी होने के बाद सेनाध्यक्ष ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान की पिटाई भी कर दी थी। उसी के बाद इमरान खान से इस्तीफ़ा लिया गया। लेकिन ये भी सच है कि इमरान खान पाकिस्तान के लोकप्रिय नेता हैं। उन्होंने “हकीकी आज़ादी” यानि असली आज़ादी की एक मुहिम छेड़ दी है।

ये आज़ादी वे पाकिस्तानियों को अपनी सेना से दिलाना चाहते है। सीधे शब्दों में कहा जाये तो वे पाकिस्तान में सेना की राजनीतिक ताकत को कमज़ोर करना चाहते हैं। परन्तु जिस देश में प्रधानमत्रीं को तकरीबन हर बड़े फैसले के लिए सेना की मंजूरी लेनी पड़ती हो वहाँ ऐसा करना असंभव ही है। इमरान खान सोचते हैं कि वे अपनी लोकप्रियता से ऐसा कर सकते हैं। वैसे भी जरनल बाजवा से तो अब उनकी निजी खुन्नस भी हो गयी है। इसीलिये गद्दी छोड़ने के बाद इमरान खान ताबड़तोड़ रैलियाँ कर रहे हैं। इसमें बड़ी तादाद में लोग आ रहे हैं। देश के कोने कोने में हो रही इन रैलियों में युवा लोग ज्यादा आ रहे हैं। अब इमरान ने इन्हें इस्लामाबाद में कुछ करने को तैयार होने को कहा हैं।

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सार्वजनिक सभाओं में वे अब सेना को सीधे ललकार रहे हैं। उनकी पार्टी के नेता सेना के अफसरों को अपनी कमान के आदेश न मानने के लिए उकसा रहे हैं। सेना की कमान को सोशल मीडिया पर गालियाँ तक दी जा रही है। माना जाता है कि इमरान खान के पार्टी की सोशल मीडिया टीम ऐसा कर रही है। उधर सेना के लिए भी ये सब न तो निगलते बन रहा है न ही उगलते। इमरान खान की रैलियों में उमड़ती भीड़ को देखते हुए सेना सीधे उन पर हाथ डालने से कतरा रही है। इमरान खान और उनकी पार्टी सेना द्वारा बोई हुई एक ऐसी फसल हो गई है जो स्वयं सेना और उसकी कमान के लिए अब ज़हर बन गयी है। लेकिन इतिहास बताता है कि लोकप्रिय राजनेताओं का आखिरकार पाकिस्तान में बुरा हश्र होता है। लोकप्रिय नेताओं की एक बड़ी कतार पाकिस्तान में रही है। जिस राजनीतिक नेता ने वहाँ भी एक हद से बढ़ने की कोशिश की है उसका अंजाम दुनिया देख चुकी है। भुट्टो को वहाँ फाँसी दे दी गयी थी। शेख मुजीब को अलग देश यानि बांग्लादेश बनाना पड़ा था। बेनज़ीर भुट्टो एक हमले में मारी गयीं थी। मौजूदा लोकप्रिय नेता नवाज शरीफ चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित होने के बाद एक तरह से लन्दन के निर्वासन में हैं।

बाढ़ की मार और गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा पाकिस्तान तकरीबन श्रीलंका बनने की राह पर है। सऊदी अरब और चीन जैसे दोस्त देश भी अब पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने को तैयार नहीं हैं। वे जानते हैं कि उनका पैसा डूबने ही वाला है। चीन-पाकिस्तान इकॉनॉमिक कॉरिडोर पर भी काम बंद पड़ा है। इसमें चीन अभी तक कोई 40 अरब डॉलर लगा चुका है। समस्याओं के इस अंबार के बीच इमरान खान और जरनल बाजवा की ये लड़ाई पाकिस्तान को गृह युद्ध की तरफ ले जाती हुई दिखाई दे रही है। अगर ऐसा होता है तो इससे केवल दक्षिण एशिया ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित होगी। पाकिस्तान के परमाणु हथियार सबके लिए चिंता का विषय हैं। भारत भी इससे आँखें मूंदकर नहीं रह सकता क्योंकि पड़ोस में लगी इस आग की तपिश हम पर भी असर डालेगी।

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