छत्तीसगढ़ में कटते जंगल को बचाने के नाम पर नौटंकी, कांग्रेसी अब बहा रहे घडिय़ाली आंसू
कांग्रेस-भूपेश क्यों कर रहे रुदाली
अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, रायपुर। रायगढ़, अम्बिकापुर, कोरबा और कई जिलों में इन दिनों कांग्रेस नेता जंगल कटाई रोकने के नाम पर सिर्फ उगाही हर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अभी चीख पुकार मचा रहे हैं कि अडानी द्वारा जंगल काटा जा रहा है जबकि उन्हीं के कार्यकाल से ये खेल चल रहा है। जिस कांग्रेसी को देखो आये दिन रायगढ़ और दूसरे कटते जंगल को बचाने के नाम पर नौटंकी करते देखे जा सकते हैं। उनका काम सिर्फ हल्ला कर वहां जाना होता है, लेकिन कुछ दिन बाद खामोश हो जाते हैं जनता इसे क्या समझेगी। इसका साफ मतलब होता है कि वे सिर्फ अपनी जेबें भरने के लिए ही वहां जाते हैं इनको छत्तीसगढ़ के कटते जंगलों से कोई सरोकार नहीं है। कांग्रेसी साय सरकार पर आरोप लगाते हैं कि अडानी द्वारा जंगलों को कटवाया जा रहा है लेकिन हकीकत कुछ और ही है।
कांग्रेस शासनकाल में सब कुछ अडानी को दे दिया गया था। कांग्रेस के समर्थको के एक समूह ने सोची समझी रणनीति के तहत साजिश रचकर ग्रामीणों को भडक़ाने का प्रयाश किया और विरोध प्रदर्शन भी किया था। जिसके बाद उन्हें पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में भूपेश बघेल भी विरोध जताने पहुंचे और राजनीति कर वापस आये। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक बयान में कहा था कि कोयला आने से ही बिजली बनेगी और कोयले के लिए जंगलों की कुछ बलि तो देनी ही पड़ेगी, ऐसे विरोधाभाषी बयान से वे खुद ही कटघरे में खड़े हो जाते हैं। कोल ब्लॉक प्रारंभ करने और जमीन समतलीकरण के लिए यहां स्थित जंगलों की कटाई की जानी है। उदाहरहण के लिए गारे पेलमा सेक्टर 2 के अंतर्गत 14 गांवों के 2245 परिवार प्रभावित होने वाले हैं। ऐसे ही कोरबा, अंबिकापुर , रायगढ़, जिले में भी जंगल कटने की बारी है। यदि जंगल की कटाई करना ही नहीं था तो कोल ब्लाक आबंटन ही क्यों किया। सरकारी सूत्रों के मुताबिक कोल ब्लाक आबंटन की प्रक्रिया में राज्य सरकार की नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट की जरुरत पड़ती ही है यह भी बताया गया कि कोयला मंत्रालय द्वारा उद्योगों के लिए कोयला खदानों की नीलामी में राज्य सरकार की सहमति महत्वपूर्ण होती है। यानी इस सहमति के बाद ही कोल ब्लाक आबंटन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। यहाँ यह बताना जरुरी है कि विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस के नेता कोयला खनन का विरोध करती है और जब सत्तासीन हुए तो कोयला खदानें अडानी को ही सौंप दी। जिसका जीता जागता उदाहरण कोरबा जिले के दो खदान हैं। कोरबा जिले के दो कोयला खदानों को अडानी को देने कांग्रेस की सरकार में ही फैसला लिया गया था। यह भी देखा गया है कि पार्टी के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी भी कोयला खदान क्षेत्र में जाकर राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार को घेरने में पीछे नहीं रहे हैं। ऐसी दोगली नीति से न तो छत्तीसगढिय़ों को फायदा होगा न ही कांग्रेस पार्टी को। मजे की बात छत्तीसगढ़ में जब डॉ. रमन सिंह की सरकार थी तब ऐसा माहौल बनाया गया था और छत्तीसगढ़ में भूपेश की सरकार बनते ही पाला बदल कर अडानी को ही कोल ब्लाक सौंप दिया गया। अभी भी कांग्रेसी यही कर रहे हैं जिसे देखो अडानी के कोल ब्लाक का विरोध करने पहुंच रहे है और वहां से आने के बाद ठंडे पड़ जाते हैं।
छत्तीसगढ़ के कोल ब्लॉक से कई मिलियन टन कोयला प्रतिवर्ष निकाला जाना है। जिससे व्यापक स्तर पर जल, जंगल, जमीन सहित वहां रहने वाले परिवार प्रभावित होगा , यही वजह है कि स्थानीय लोग और जनप्रतिनिधि कोल ब्लॉक का विरोध कर रहे हैं। और कांग्रेसी इन ग्रामीणों के साथ घडिय़ाली आंसू बहाकर मौके का फायदा उठा रहे हैं। विकास के लिए लगातार बिजली और कोयले की आवश्यकता देश के भविष्य को देखते हुए अत्यंत आवश्यक है। और कोई न कोई बड़ा ही इंडस्ट्रीज इस कार्य को अंजाम दे सकते हैं। कांग्रेस शासन काल में राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने में दो या तीन उद्योग घरानों को उनकी क्षमता देखते हुए कार्य को विरोध के बावजूद दिया जाता था। अब कांग्रेस के सभी नेता छत्तीसगढ़ आते हैं और रुदाली करके छाती पीट रहे हैं। चर्चा तो यह भी है कि अपने हिस्से का दबी जुबान में मांग करने से भी पीछे नहीं हट रहे और धरना प्रदर्शन का बहाना कर अपना हिस्सा प्राप्त कर दिल्ली वापस लौट जाते हैं। कांग्रेस के बड़े नेताओ के इशारे पर ग्रामीणों कि आवाज उठाने का कांग्रेसी झूठा रोना रो रहे हैं। पब्लिक हियरिंग में स्थानीय लोगों ने कई सुनवाई में हिस्सा ही नहीं लिया और सभी गांवों के लोग इक_ा होकर कांग्रेस के समर्पित कार्यकर्ता द्वारा आयोजन स्थल के बाहर नारे लगाने का भी फायदा ग्रामीणों को नहीं मिल पाया। कांग्रेसी नेता सिर्फ जेबें भरने में आगे है।
विगत दिनों कांग्रेस के सभी बड़े पदाधिकारी चाहे वे दिल्ली के हो या प्रदेश के, कोयला का रोना रो कर बड़ा हंगामा प्रायोजित मीडिया के माध्यम से किये। लेकिन अंदर चर्चा यह है कि सभी का मकसद उद्योगपति से भारी मात्रा में चंदा उगाही मात्र था। इसी कारण कई वरिष्ठ नेताओं ने रायगढ़ जाने का प्रोग्राम अंतिम समय में स्थगित किया और कुछ दिल्ली गए और कुछ बीमार हो गए। छत्तीसगढ़ के उद्योग गलियारों में खुलकर चर्चा हो रही है कि कांग्रेस के नेता मनमाना पैसा वसूलने में अभी भी पीछे नहीं हट रहे हैं उन्हें छत्तीसगढ़ की जनता और यहां के जंगलों/संसाधनों से किसी प्रकार का लगाव या लेना देना नहीं है।