
अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, गणेश चतुर्थी। गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर पूजा रीति-रिवाजों में एक खास परंपरा है—२१ पत्तियों (पत्रों) की पूजा, जिसे पत्र पूजा कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इन २१ पत्तियों के अर्पण से विघ्नहर्ता गणेशजी जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों के जीवन से संकट दूर होते हैं, सुख-समृद्धि आती है।
21 पत्र अर्पित करने की परंपरा सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि इसमें गहरा आध्यात्मिक रहस्य छिपा है. हर पत्ता एक विशेष शक्ति, गुण और आशीर्वाद का प्रतीक है.जैसे दूर्वा समृद्धि का, शमी विजय का, बेल पवित्रता का और धतूरा उग्र शक्तियों को शांत करने का प्रतीक है. खास बात यह है कि सामान्य दिनों में गणपति को तुलसी पत्र नहीं चढ़ाया जाता, लेकिन गणेश चतुर्थी पर इसे शुभ माना जाता है|
21 पत्तों की सूची:-
शमी पत्र इसे विजय और पाप नाशक माना गया है।
भृंगराज पत्र आयुर्वेद में आयु और ऊर्जा देने वाला।
बेल पत्र त्रिदेवों का प्रतीक, शिव और गणपति को प्रिय।
दूर्वा पत्र गणपति का सबसे प्रिय, समृद्धि का प्रतीक।
बेर पत्र सरलता और संतोष का द्योतक।
धतूरा पत्र उग्र ऊर्जा को शांत करने वाला।
तुलसी पत्र सामान्यतः गणपति को नहीं चढ़ाया जाता, लेकिन गणेश चतुर्थी पर अपवाद स्वरूप अर्पित किया जाता है।
सेम पत्र अन्न और उर्वरता का प्रतीक।
अपामार्ग पत्र रोग निवारक और शुद्धि का द्योतक।
कण्टकारी पत्र बाधा नाशक और औषधीय गुणों वाला।
सिन्दूर पत्र सौभाग्य और मंगल का प्रतीक।
तेजपत्ता पत्र सुगंध, शांति और समृद्धि लाने वाला।
अगस्त्य पत्र ज्ञान और शक्ति का प्रतीक।
कनेर पत्र निडरता और साहस का प्रतीक।
केले का पत्र समृद्धि और उन्नति का प्रतीक।
आक पत्र रोग हरने वाला और गणेशजी का प्रिय।
अर्जुन पत्र धैर्य और शक्ति का प्रतीक।
देवदार पत्र शुद्धता और स्थिरता दर्शाने वाला।
मरुआ पत्र सुगंध और पवित्रता का प्रतीक।
कचनार पत्र उन्नति और सौंदर्य का द्योतक।
केतकी पत्रपवित्रता और मंगल कार्यों का प्रतीक।
धार्मिक और जीवन-दर्शन में गहरा संदेश
एक अर्थ यह भी है कि २१ पत्तों का पूजन हमारे सम्पूर्ण अस्तित्व—शरीर, मन और आत्मा—का प्रतीकात्मक अर्पण है।
दैनिक जीवन के पंचमहाभूतों (5 मूल तत्वों) और १६ इंद्रियों को मिलाकर कुल २१ अंग माने जाते हैं, और इसलिए यह पूजा हमारे अहंकार (ego) को नियंत्रित करके पूर्ण समर्पण का मार्ग दिखाती है।





