अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, :नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है. मां ब्रह्मचारिणी का नाम का अर्थ को हम ऐसे समझ सकते हैं ब्रह्म का अर्थ है तप और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली आदि स्रोत शक्ति.मां ब्रह्मचारिणी के हाथों में अक्ष माला और कमंडल होता है. मां को साक्षात ब्रह्म का स्वरूप माना जाता है. वहीं कठोर तप के कारण इनके मुख पर अद्भुत तेज विद्यमान रहता है. नवरात्रि के दूसरे दिन मां भगवान के स्वरूप मां कुष्मांड़ा की विधि-विधान से पूजा और व्रत का पाठ करने व्यक्ति को जीवन समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है और हर कार्य में सफलता के मार्ग खुलते हैं|
मां ब्रह्मचारिणी की कथा:
कथा के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी का जन्म पर्वत राज हिमालय के घर पुत्री के रूप में हुआ था. जिसके बाद उन्होंने नारद जी के उपदेश का पालन किया जिसके अनुसार भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए मां माता ने घोर तपस्या की थी. इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया. एक हजार वर्ष तक मां ब्रह्मचारिणी ने सिर्फ फल-फूल खाकर तपस्या की और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया. कुछ दिनों तक कठिन व्रत रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहती रही. कई वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाएं और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं. इसके बाद तो मां ब्रह्मचारिणी ने सूखे बिल्व पत्र खाने भी छोड़ दिए. वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं|
कठिन तपस्या के कारण मां ब्रह्मचारिणी का शरीर एकदम क्षीण हो गया. माता मैना अत्यंत दुखी हुई और उन्होंने उन्हें इस कठिन तपस्या से विरक्त करने के लिए आवाज़ दी उमां तब से देवी ब्रह्मचारिणी का एक नाम उमा भी पड़ गया. उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया. देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी देवी ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कार्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे|
माता की तपस्या को देखकर ब्रह्माजी ने आकाशवाणी करते हुए कहा कि देवी आज तक किसी न भी इतनी कठोर तपस्या नही की होगी जैसी तुमने की है. तुम्हारे कार्यों का सराहना चारों ओर हो रही है. तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी होगी जल्दी ही भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हे पति रूप में प्राप्त अवश्य होंगे. अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं. इसके बाद माता घर लौट आएं और कुछ दिनों बाद ब्रह्मा के लेख के अनुसार उनका विवाह महादेव शिव के साथ हो गया|