अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश की स्कूली शिक्षा व्यवस्था को अधिक सशक्त, संतुलित और गुणवत्तापूर्ण बनाने के उद्देश्य से शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण किए जाने की पहल की है। यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एवं शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के दिशा-निर्देशों के अनुरूप लिया गया है, ताकि शिक्षक संसाधनों का अधिकतम और समान उपयोग सुनिश्चित किया जा सके। प्रदेश में वर्तमान में 30 हजार 700 शासकीय प्राथमिक शालाएं संचालित हो रही हैं, जिनमें छात्र-शिक्षक अनुपात 21.84 है। वहीं 13 हजार 149 पूर्व माध्यमिक शालाओं में यह अनुपात 26.2 है, जो राष्ट्रीय औसत की तुलना में बेहतर स्थिति को दर्शाता है
पूर्व माध्यमिक शालाओं में 105 छात्रों तक 3 शिक्षक और 1 प्रधान पाठक, तथा प्रत्येक 35 छात्रों पर एक अतिरिक्त शिक्षक नियुक्त किया जाना है। छत्तीसगढ़ में कई प्राथमिक विद्यालयों में प्रधान पाठक के पद अधिनियम के लागू होने से पहले से स्वीकृत हैं, इसलिए शिक्षक गणना में इन पदों को भी सम्मिलित किया गया है। वर्ष 2008 के बाद प्रारंभ हुए विद्यालयों में प्रधान पाठक का पद स्वीकृत नहीं है। प्रदेश में इस समय प्राथमिक शालाओं में कुल 77 हजार 845 सहायक शिक्षक कार्यरत हैं, जबकि पूर्व माध्यमिक शालाओं में 55 हजार 692 शिक्षक कार्यरत हैं। यदि शिक्षक विहीन प्राथमिक शालाओं में 2-2 तथा एकल शिक्षकीय शालाओं में 1-1 अतिरिक्त शिक्षक की नियुक्ति की जाए तो कुल 7 हजार 296 सहायक शिक्षकों की आवश्यकता होगी, जबकि उपलब्ध अतिशेष सहायक शिक्षक केवल 3 हजार 608 हैं। इसी प्रकार पूर्व माध्यमिक स्तर पर शिक्षक विहीन शालाओं में 4, एकल शिक्षकीय में 3, दो शिक्षकीय में 2 और तीन शिक्षकीय में 1 अतिरिक्त शिक्षक की आवश्यकता होगी। इस मानक के अनुसार कुल 5 हजार 536 शिक्षकों की आवश्यकता बनती है, जबकि केवल 1 हजार 762 शिक्षक ही अतिशेष हैं।
युक्तियुक्तकरण के लाभ-
शिक्षक विहीन एवं एकल शिक्षकीय विद्यालयों में अतिशेष शिक्षकों की तैनाती संभव होगी। अतिरिक्त शिक्षक की उपलब्धता बढ़ेगी। स्थापना व्यय में कमी आएगी। एक ही परिसर में पढ़ाई की निरंतरता से बच्चों के ड्रॉपआउट में कमी आएगी। लगभग 89 प्रतिशत बच्चों को तीन बार अलग-अलग स्तरों पर प्रवेश लेने की आवश्यकता नहीं होगी। छात्र ठहराव दर में वृद्धि होगी। मजबूत अधोसंरचना प्रदान करना सुगम होगा। छत्तीसगढ़ सरकार का यह प्रयास शिक्षकों के संसाधनों का बेहतर और समान वितरण सुनिश्चित करने की दिशा में एक दूरदर्शी एवं व्यावहारिक कदम है। इससे न केवल शालाओं की कार्यप्रणाली में सुधार होगा, बल्कि विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का लाभ भी सुलभ रूप से प्राप्त होगा।