अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, नाग पंचमी 2025: आज देशभर में नाग पंचमी का त्योहार मनाया जा रहा है। यह दिन नाग देवता की पूजा और उनकी कृपा पाने का सर्वश्रेष्ठ अवसर है। मान्यता है कि नाग पंचमी पर नाग देवता को दूध चढ़ाने से वह प्रसन्न होते हैं, जिसके प्रभाव से साधक को कालसर्ष दोष सहित अन्य समस्याओं से मुक्ति मिलती हैं। इसके अलावा नाग देवता सदैव हमारी रक्षा भी करते हैं। शास्त्रों में नाग पंचमी का संबध महाकाल से भी जोड़ा जाता है। दरअसल, नाग महादेव के गले का हार है और वह हमेशा उन्हें धारण किए रहते हैं।
करें यह एक उपाय:
नाग पंचमी पर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करें। इस दौरान आप सबसे पहले शिवलिंग पर शुद्ध जल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक करें। फिर बिल्वपत्र, धतूरा और चंदन लगाएं। इसके बाद धूप-दीप जला लें। अब मन को शांत रखते हुए भोलेनाथ के महामृत्युंजय मंत्र ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ का जप करें। फिर नाग देवता और शिव जी की आरती हैं। मान्यता है कि इस सरल उपाय से कालसर्ष दोष से मुक्ति प्राप्त होती हैं।
इन मंत्रों का करें जाप:
ॐ नगपति नम:
ॐ व्याल नम:
ॐ अहि नम:
ॐ विषधर नम:
ॐ शैल नम:
ॐ भूधर नम:
नाग पंचमी की आरती:-
नाग पंचमी की आरती: श्रीनागदेव आरती पंचमी की कीजै ।
तन मन धन सब अर्पण कीजै ।
नेत्र लाल भिरकुटी विशाला ।
चले बिन पैर सुने बिन काना ।
उनको अपना सर्वस्व दीजे।।
पाताल लोक में तेरा वासा ।
शंकर विघन विनायक नासा ।
भगतों का सर्व कष्ट हर लिजै।।
शीश मणि मुख विषम ज्वाला ।
दुष्ट जनों का करे निवाला ।
भगत तेरो अमृत रस पिजे।।
वेद पुराण सब महिमा गावें ।
नारद शारद शीश निवावें ।
सावल सा से वर तुम दीजे।।
नोंवी के दिन ज्योत जगावे ।
खीर चूरमे का भोग लगावे ।
रामनिवास तन मन धन सब अर्पण कीजै ।
आरती श्री नागदेव जी कीजै ।।
भगवान शिव की आरती :
जय शिव ओंकारा ऊँ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
ऊँ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
ऊँ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे॥
ऊँ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥
ऊँ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ऊँ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥
ऊँ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥
ऊँ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥
ऊँ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥
ऊँ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ऊँ शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥
ऊँ जय शिव ओंकारा…॥