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बिल्डरों के जाल में फंसे आम लोग, राहत की उम्मीद टूटी

अनादि न्यूज़ डॉट कॉम,छत्तीसगढ़ :  “छत्तीसगढ़ में सात साल पहले जब रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) का गठन हुआ, तो आम लोगों को बिल्डरों की मनमानी से राहत मिलने की उम्मीद जगी थी। लेकिन आज यह उम्मीद धीरे-धीरे टूट रही है। रेरा में शिकायत करना आसान हो सकता है, पर उसका नतीजा पाना उतना ही मुश्किल। सात साल में रेरा को मिली 3000 से ज्यादा शिकायतों में से आधे से अधिक को सिर्फ इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि शिकायतकर्ता जमीनी दस्तावेज जमा नहीं कर पाए। यह स्थिति उन लोगों के लिए और दुखद है, जो अपनी जिंदगी भर की कमाई लगाकर घर का सपना देखते हैं लेकिन बिल्डरों की ठगीबाजी का शिकार हो जाते हैं।”

शिकायत आसान, लेकिन राहत मुश्किल

रेरा में शिकायत दर्ज करने के लिए ऑनलाइन सुविधा है और मात्र 1000 रुपये का न्यूनतम शुल्क। फिर भी, छत्तीसगढ़ में हर साल औसतन 400 से भी कम शिकायतें दर्ज हो रही हैं, जबकि महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में यह संख्या 10 हजार से ज्यादा है। इसका बड़ा कारण है रेरा की पालिसी। सुनवाई के दौरान पीड़ितों/शिकायतकर्ताओं से इतने सारे दस्तावेज मांगे जाते हैं कि लोग थक जाते हैं। उनके पास वे कानूनी जानकारियां भी उपलब्ध नहीं होतीं, इसलिए उनकी शिकायतें खारिज हो जाती हैं, और बिल्डरों की मनमानी जारी रहती है।

रेरा की कार्रवाई, कागजों में सजा दिखावा

रेरा ने सात साल में केवल 10 बिल्डरों की खरीदी-बिक्री को रोक लगाया, जिनमें ज्यादातर रायपुर के थे। जब बिल्डर्स ने प्रोजेक्ट्स में प्लॉट, फ्लैट, मकान या फ्लोर की बिक्री रोकने के लिए बिना पंजीयन का पत्र दिखा गया। शिकायतों के आधार पर यह जांच तक नहीं की कि रोक का पालन हो रहा है या नहीं। नतीजन, कुछ बिल्डर्स पंजीयन अप्रूवल के साथ मिलाकर बिना रोक वाले प्रोजेक्ट्स में खरीदी-बिक्री करते रहे। कुछ तो दो साल के बाद में अपना मामला ही रेरा से बदलवा लिए। यह स्थिति रेरा की निगरानी व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करती है।

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निगरानी का अभाव, बिल्डर बेलगाम

रेरा के पास बिल्डरों पर कठोर कदम की शक्ति तो है, लेकिन निगरानी का कोई ठोस सिस्टम नहीं है। शिकायतों पर कार्रवाई के बाद भी रेरा यह सुनिश्चित नहीं करता कि उनकी मनमानी रुकी है या लोग ठगे जा रहे हैं। इस महत्वपूर्ण कमी की वजह से रेरा का दावा है कि वह लोगों को राहत दे रहा है, दूसरी तरफ हकीकत यह है कि बिल्डर खुलेआम ठग रहे हैं।

आखिर रास्ता क्या है?

रेरा को अगर आम लोगों का भरोसा जीतना है, तो उसे अपनी प्रक्रिया को सरल करना होगा। दस्तावेजों की मांग को कम करना, शिकायतकर्ताओं को कानूनी सहायता देना और बिल्डरों पर लगाए गए रोक की कार्रवाई पर निगरानी करना ज़रूरी हो जाता है, लोगों में आत्मविश्वास तभी लौटेगा, जबकि वे अपनी शिकायत दर्ज कराने से हिचकिचाएं नहीं।

रेरा का मकसद बिल्डरों की मनमानी रोकना और आम लोगों को उनका हक दिलाना था। लेकिन मौजूदा हालात में यह मकसद अधूरा सा लगता है। सवाल यह है कि क्या रेरा वाकई में उन लोगों की आवाज बन पाएगा, जिनके सपनों का घर बिल्डरों की धोखाधड़ी में उलझ गया है? जवाब शायद अभी तक के पास है।