महिला खतना पर प्रतिबंध याचिका—SC ने केंद्र को नोटिस, POCSO उल्लंघन का मुद्दा उठा।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवाई ने भी इस्लाम में खतने (FGM) की प्रथा को लेकर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि संविधान में समान अधिकार मिलने के बावजूद देश में बेटियों पर FGM लागू किया जा रहा है। सीजेआई ने यह भी कहा था कि अदालत में केवल FGM ही नहीं, बल्कि सबरीमाला, पारसी समुदाय में अदियारी और अन्य धार्मिक स्थलों पर महिलाओं के कथित भेदभाव के मामलों पर भी सुनवाई की जा रही है।
स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदेह
याचिका में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के हवाले से कहा गया है कि FGM लड़कियों और महिलाओं के मानव अधिकारों का उल्लंघन है और यह स्वास्थ्य के लिए भी बेहद खतरनाक है। इसके कारण संक्रमण, प्रसव में कठिनाई और अन्य गंभीर शारीरिक परेशानियां हो सकती हैं। याचिका में यह भी बताया गया है कि यह प्रथा यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करती है। इसलिए याचिका में अदालत से आग्रह किया गया है कि FGM प्रथा को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए, ताकि बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और अन्य संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है। अदालत के फैसले के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि भारत में महिलाओं के जननांग काटने की प्रथा पर किस प्रकार की कानूनी रोक लगाई जा सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह मामला समाज में बालिका सुरक्षा, महिला अधिकार और धार्मिक प्रथाओं के बीच संतुलन स्थापित करने के लिहाज से महत्वपूर्ण है। उनका मानना है कि अदालत के निर्णय के बाद पूरे देश में इस प्रथा के खिलाफ कानून और जागरूकता को बढ़ावा मिलेगा।
क्या होता है खतना
रूढ़िवादी मुसलमानों का मानना है कि जब तक महिलाओं का खतना नहीं किया जाता, वे शुद्ध नहीं मानी जातीं और शादी के लिए तैयार नहीं होतीं। कानून के अनुसार, खतना करने के दोषी पाए जाने वालों को सात साल तक की कैद हो सकती है। खतना प्रक्रिया में अक्सर महिलाओं के जननांग का हिस्सा काट दिया जाता है, और कई डॉक्टर इसे प्लास्टिक सर्जरी के बहाने अंजाम देते हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में लड़कियों का खतना करवाने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है।






