अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत हर साल जेठ माह की अमावस्या तिथि को किया जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत तथा वट वृक्ष की पूजा करती है. वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने वाले इस व्रत को लेकर कुछ खास नियम बताए गए हैं. मान्यता है कि इन सभी नियमों का पालन करने और श्रद्धा-भाव से पूजा करने वाली महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
वट सावित्री व्रत कब है:
वैदिक पंचांग के अनुसार, जेठ माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन 27 मई को सुबह 8 बजकर 31 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, इस बार वट सावित्री का व्रत 26 मई को रखा जाएगा.
वट सावित्री व्रत में क्या नहीं करें:
सनातन धर्म में किसी भी व्रत में गलत कार्यों से बचना चाहिए. व्रत हमेशावचन और कर्म की शुद्धता के साथ करना चाहिए, तभी उसका पूरा फल प्राप्त होता है, इसलिए किसी के प्रति घृणा या द्वेष न रखें.
वट सावित्री व्रत के दिन व्रती महिलाएं काला, नीला और सफेद रंग का उपयोग अपने श्रृंगार या कपड़ों में न करें. जैसे इन रंगों की चूड़ी, साड़ी, बिंदी आदि का उपयोग न करें.
झूठ बोलने, किसी का अपमान करने या किसी प्रकार के नकारात्मक विचारों को मन में ना आने दें. पूरे दिन शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखें.
बिना पूजा किए व्रत का पारण न करें. साथ वट सावित्री व्रत के दिन तामसिक चीजों से परहेज करें.
वट सावित्री व्रत में क्या करें:
यह व्रत अखंड सौभाग्य का है, इसलिए व्रती को सोलह श्रृंगार करना चाहिए. इसके लिए व्रत से पहले ही व्यवस्था कर लें. वट सावित्री व्रत करने वाली महिलाओं को लाल, पीले और हरे रंग का उपयोग करना चाहिए. इन रंगों को शुभ माना जाता है. जैसे लाल या पीली साड़ी, हरी चूड़ी, लाल बिंदी, महावर आदि. वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा की जाती है. पूजा के समय वट वृक्ष में कच्चा सूत 7 बार लपेटते हैं. 7 बार पेड़ की परिक्रमा करते हुए सूत को लपेटा जाता है. इस व्रत का पारण भीगे चने खाकर करते हैं. पूजा खत्म होने के बाद माता सावित्री और वट वृक्ष से सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद लेते हैं. साथ ही पूजा करते समय आपको वट सावित्री व्रत कथा यानी सावित्री और सत्यवान की कथा सुननी चाहिए|