अनादि न्यूज़ डॉट कॉम, रायपुर। ”परिवार में कैसे जीना है, अगर ये सीखना है तो भगवान श्रीराम से सीखो। दुनिया में कैसे जीना है, अगर ये सीखना है तो भगवान श्रीकृष्ण से सीखो और मुक्ति का मार्ग कैसे हासिल करना है, अगर ये सीखना है तो भगवान श्रीमहावीर से सीखो। हम लोग दिमाग में सोच बना लेते हैं- ये मेरे भगवान, ये तेरे भगवान। भगवान किसी धर्म के नहीं, भगवान तो सबके और पूरी मानवता के होते हैं। हर धर्म के भगवान और गुरुओं ने जो भी बातें कहीं, वे पूरी धरती के लिए, अखिल ब्रह्माण्ड के लिए और पूरी मानवता के लिए कहीं। आगमों में जो जीने की बातें कहीं गई हैं तो वो केवल जैनियों के लिए नहीं कही गई और गीता में जो बातें कहीं गई वे केवल हिंदुओं के लिए नहीं कही गई हैं, पूरी मानवता के लिए कहीं गई हैं।
दुनिया के सारे शास्त्रों में अच्छी बातें होती हैं, तय हमें करना है कि हम श्रोता बनकर सुनते हैं, कि सरोता बनकर। श्रद्धा और विवेकपूर्वक जो जीवन में क्रियाओं को संपादित करता है उसका नाम श्रावक है। जैन वो है जो जयनापूर्वक, अहिंसापूर्वक जीवन जीता है, जैन वो है जो इंसानियत के साथ जीता है और जो नवकार मंत्र का जाप करने वाला होता है। भगवान श्रीमहावीर कहते हैं- जन्म से कोई भी व्यक्ति न तो जैन होता है, न ब्राह्मण होता है, न क्षत्रिय होता, न वैश्य होता है और न ही शूद्र। आदमी जो भी होता है अपने कर्म से होता है। केवल अपने नजरिए को बड़ा करना होता है। । ” ये प्रेरक उद्गार राष्ट्रसंत श्रीललितप्रभ सागरजी महाराज ने आउटडोर स्टेडियम बूढ़ापारा में जारी दिव्य सत्संग जीने की कला के अंतर्गत अध्यात्म सप्ताह के पांचवे दिन शुक्रवार को ‘एक घंटे में समझें आगमों और गीता का रहस्य’ विषय पर व्यक्त किए।
भक्तिगीत ‘रोज थोड़ा-थोड़ा प्रभु का भजन कर लैं, मुक्ति का प्यारे तू जतन कर लै…’ के मधुर गायन से अपूर्व भक्तिभाव जागृत करते हुए उन्होंने कहा कि एक ऐसे देवदूत का आज जन्म दिन है जिनका जन्म तो कारागार में हुआ था, और जब दुनिया से गए तो अपने जीवन के दिव्य गुणों की छाप छोड़ इस दुनिया के दिलों पर राज करके चले गए। जीवन इसी का नाम है कि उन्होंने पूरी जिंदगी मुस्कुराते-हंसते हुए, खिलते और आनंद से जीकर और धरती को स्वर्ग बनाकर जिया। और हाथ में एक ऐसी चीज ले ली, वो थी बांसुरी। बांसुरी बड़ी गजब की चीज होती है, उसकी पहली खासियत होती है- बिना बुलाए वो कभी बोलती नहीं। उसकी दूसरी खासियत है- वो जब भी बोलती है तो मीठी बोलती है। प्रकृति से उन्हें कैसा प्रेम भरा रहा कि सिर पे लगाया तो कोई सोने का मुकुट नहीं लगाया, मोर पंख लगा दिया जिससे प्रकृति का लगाव बना रहा। हाथ में जिंदगी में कभी धनुष-बाण नहीं उठाया, हाथ में बांसुरी लेकर हमेशा धरती पर मधुर तान बिखेरने में लगे रहे।